Jagannath Saptakam | जगन्नाथ सप्तकम् | रोग,दुःख,कष्ट निवारण, मनोवांछित फल प्राप्ति हेतु नित्य सुनें @Mere Krishna <br /><br />श्रीजगन्नाथसप्तकम् <br /><br />प्रकाशकान्तचिन्मयं प्रसन्नदारुविग्रहं<br /> प्रफुल्लफुल्लसुन्दरं पुरीप्रमोदमन्दिरम् ।<br />विषाणुसङ्घशोषिणं विशालवैद्यघोषिनं<br /> सहास्यगोललोचनं महाप्रभुं भजाम्यहम् ॥ १॥<br /><br />परम्पराविमण्डितं तटे वटे मठे रतं<br /> महाप्रसादमज्जितं महानुभावसज्जितम् ।<br />सुवर्णकीर्णनिर्जितं समन्दमन्दहासितं<br /> पहण्डिनृत्यपण्डितं जगद्गुरुं भजाम्यहम् ॥ २॥<br /><br />त्रितापपापनाशकं त्रिधातुदोषघातकं<br /> सुपञ्चभूतशोधकं विषाणुवेगरोधकम् ।<br />नितान्तशान्तिदायकं महार्तिनाशकारकं<br /> सदा जगत्सुरक्षकं महाप्रभुं भजाम्यहम् ॥ ३॥<br /><br />रथे कदापि सत्वरं विचित्रवीर्य्यमीश्वरं<br /> मुखारविन्दसिन्दूरं सगद्गदं सुधासरम् ।<br />महापुराणसत्करं महेश्वरीपुरःसरं<br /> सघोषहर्षतत्परं सदाशिवं भजाम्यहम् ॥ ४॥<br /><br />निवासनीलपर्वतं प्रफुल्लपीतसत्पटं<br /> समस्तवैष्णवाश्रितं समुद्रकूलनिर्जितम् ।<br />नितान्तशान्तचिद्घनं घनाघनप्रभायुतं<br /> नियन्तृरोगभौतिकं भिषग्वरं भजाम्यहम् ॥ ५॥<br /><br />ग्रहेशदर्पहारिणं खगेशयानचारिणं<br /> नृशंस-कंसमर्दनं समस्तगोपशासनम् ।<br />सरागराधिकाधवं कृपालुनीलमाधवं<br /> नवीनयौवनोज्वलं भजे निचोलमुज्ज्वलम् ॥ ६॥<br /><br />नियोगभोगभक्षणं वियोगवेगमर्षणं<br /> सुपुष्पहारधारिणं चराचरस्य पारिणम् ।<br />समन्त्रतन्त्रनायकं प्रवीणवेणुवादकं<br /> विषाणुमुक्तिदायकं भजे सुखप्रदायकम् ॥ ७॥<br /><br />इति प्रदीप्तनन्दशर्मविरचितं श्रीजगन्नाथसप्तकं सम्पूर्णम् ।